वैज्ञानिक नाम : Tinospora Cordifolia
कुलनाम : Menispermaceae
अंग्रेजी नाम : Tinospora
संस्कृत : गुडूची , अमृत वल्ली , वत्सादनी ,कुण्डलिनी
हिन्दी : गिलोय
जगत : पादप
परिचय
गिलोय कभी न सूखने वाली एक बडी लता है । यह एक बहुवर्षीय लता है । इसी कारण इसे अमृता के नाम से जाना जाता है । इसके पत्ते पान के पत्ते के समान होते हैं। यह समुद्र तल से लगभग 1000 फुट की ऊँचाई तक पाई जाती है। इसका तना काफी मोटा होता है। इसकी लता रस्सी की तरह होती है। इसके तने तथा शाखाओं से कई वायुवीय जड़े निकलती हैं । इस पर हरे , पीले व लाल रंग के फूल झुंड में लगते हैं । गिलोय की लता जंगलों , खेतों की मेंढ़ो , पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम व आम के वृक्ष के आस पास भी यह पाई जाती है। यह जिस भी वृक्ष पर चढ़ती है उसी वृक्ष के कुछ गुण भी अपने अंदर समाहित कर लेती है। नीम के वृक्ष पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ मानी जाती है।
बाह्य स्वरूप
गिलोय की बेल जंगल में , खेतों की मेंढ़ो , चट्टानों आदि स्थानों पर कुण्डलाकार चढ़ती हुई मिलती है। इसका तना मोटा होता है। यह आम और नीम के वृक्ष के आस पास भी पाई जाती है। इसकी पहचान यह है कि इसकी बाह्य छाल हल्कें भूरे रंग की कागज जैसी परतों में होती है। खुरचने में यह परतों में निकलती है। इसके तने से हवा में जड़े निकलकर झूलती हैं , जो भूमि के अंदर घुसकर नये पौधे को जन्म देती है। इस पर ग्रीष्म ऋतु में छोटे - छोटे फूल गुच्छों में पीले रंग के लगते हैं। तथा पकने के बाद फल लाल हो जाते हैं। बीज सफेद चिकने होते हैं।
गुण
आयुर्वेद के अनुसार गिलोय की पत्तियां, जड़ें और तना तीनो ही भाग सेहत के लिए बहुत गुणकारी हैं लेकिन बीमारियों के इलाज में सबसे ज्यादा उपयोग गिलोय के तने या डंठल का ही होता है। गिलोय में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से यह बुखार, पीलिया, गठिया, डायबिटीज, कब्ज़, एसिडिटी, अपच, मूत्र संबंधी रोगों आदि से आराम दिलाती है। बहुत कम औषधियां ऐसी होती हैं जो वात, पित्त और कफ तीनो को नियंत्रित करती हैं, गिलोय उनमें से एक है। गिलोय का मुख्य प्रभाव टॉक्सिन (विषैले हानिकारक पदार्थ) पर पड़ता है और यह हानिकारक टॉक्सिन से जुड़े रोगों को ठीक करने में असरदार भूमिका निभाती है।
औषधीय प्रयोग और फायदे
• गिलोय रस में त्रिफला मिलाकर क्वाथ बनाकर इसे पीपल चूर्ण व शहद के साथ सुबह - शाम सेवन करते रहने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
• धूप से या पित प्रकोप से वमन हो रहा है ,तब गिलोय स्वरस 10-15 ग्राम में 5-6 ग्राम मिश्री मिलाकर प्रातः सायं पीने से वमन शांत हो जाती है।
• गिलोय को पानी में गुनगुना करके कान में 2-2 बूंद दिन में दो बार डालने से कान का मैल निकल जाता है।
• यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी औषधि है।
खुराक और सेवन का तरीका : डायबिटीज के लिए आप दो तरह से गिलोय का सेवन कर सकते हैं।
गिलोय जूस : दो से तीन चम्मच गिलोय जूस (10-15ml) को एक कप पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट इसका सेवन करें।
गिलोय चूर्ण : आधा चम्मच गिलोय चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार खाना खाने के एक से डेढ़ घंटे बाद लें।
• डेंगू होने पर दो से तीन चम्मच गिलोय जूस को एक कप पानी में मिलाकर दिन में दो बार खाना खाने से एक-डेढ़ घंटे पहले लें। इससे डेंगू से जल्दी आराम मिलता है।
•अगर आप पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, एसिडिटी या अपच से परेशान रहते हैं तो गिलोय आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। गिलोय का काढ़ा, पेट की कई बीमारियों को दूर रखता है। इसलिए कब्ज़ और अपच से छुटकारा पाने के लिए गिलोय का रोजाना सेवन करें।
खुराक और सेवन का तरीका : आधा से एक चम्मच गिलोय चूर्ण को गर्म पानी के साथ रात में सोने से पहले लें। इसके नियमित सेवन से कब्ज़, अपच और एसिडिटी आदि पेट से जुड़ी समस्याओं से जल्दी आराम मिलता हैैै।
• खांसी से आराम पाने के लिए गिलोय का काढ़ा बनाकर शहद के साथ उसका सेवन करें। इसे दिन में दो बार खाने के बाद लेना ज्यादा फायदेमंद रहता है।
• गिलोय में ऐसे एंटीपायरेटिक गुण होते हैं जो पुराने से पुराने बुखार को भी ठीक कर देती है। इसी वजह से मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसे गंभीर रोगों में होने वाले बुखार से आराम दिलाने के लिए गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है। बुखार से आराम पाने के लिए गिलोय घनवटी (1-2 टैबलेट) पानी के साथ दिन में दो बार खाने के बाद लें।
• बीमारियों को दूर करने के अलावा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। गिलोय जूस का नियमित सेवन शरीर की इम्युनिटी पॉवर को बढ़ता है जिससे सर्दी-जुकाम समेत कई तरह की संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।
खुराक और सेवन का तरीका : गिलोय इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दिन में दो बार दो से तीन चम्मच (10-15ml) गिलोय जूस का सेवन करें।
• गिलोय त्वचा संबंधी रोगों और एलर्जी को दूर करने में भी सहायक है। अर्टिकेरिया में त्वचा पर होने वाले चकत्ते हों या चेहरे पर निकलने वाले कील मुंहासे, गिलोय इन सबको ठीक करने में मदद करती है।
इस्तेमाल करने का तरीका : त्वचा संबंधी समस्याओं से आराम पाने के लिए गिलोय के तने का पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को सीधे प्रभावित हिस्से पर लगाएं। यह पेस्ट त्वचा पर मौजूद चकत्ते, कील-मुंहासो आदि को दूर करने में सहायक है।
• गिलोय में एंटी-आर्थराइटिक गुण होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण गिलोय गठिया से आराम दिलाने में कारगर होती है। खासतौर पर जो लोग जोड़ों के दर्द से परेशान रहते हैं उनके लिए गिलोय का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है।
खुराक और सेवन का तरीका : गठिया से आराम दिलाने में गिलोय जूस और गिलोय का काढ़ा दोनों ही उपयोगी हैं। अगर आप गिलोय जूस का सेवन कर रहे हैं तो दो से तीन चम्मच (10-15ml ) गिलोय जूस को एक कप पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट इसका सेवन करें। इसके अलावा अगर आप काढ़े का सेवन कर रहे हैं तो गिलोय का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाएं और दिन में दो बार खाने के बाद इसका सेवन करें।
• गिलोय में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण यह सांसो से संबंधित रोगों से आराम दिलाने में प्रभावशाली है। गिलोय कफ को नियंत्रित करती है साथ ही साथ इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाती है जिससे अस्थमा और खांसी जैसे रोगों से बचाव होता है और फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।