Wednesday, 12 May 2021

सिरस ( शिरीष ) - परिचय , बाह्य स्वरूप , गुण , औषधीय प्रयोग और फायदे ।

 वैज्ञानिक नाम : Albizia lebbeck ( L. )

कुलनाम : Mimosaceae

अंग्रेजी नाम : Siris tree

संस्कृत : शिरीष , शुक पुष्प

हिन्दी : सिरीस , सिरस


परिचय

सिरस का पेड़ पूरे भारत में 8000 फुट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं । सिरस के कुछ वृक्ष लगाये जाते हैं और यह जंगलों में भी पाया जाता है। शिरीष की कई प्रजातियाँ मिलती हैं। यह मुख्यतः तीन जातियाँ लाल , सफेद और काले शिरीष के रुप में पायी जाती है ।
शिरीष के कुछ वृक्ष छोटे और कुछ वृक्ष बहुत ऊँचे होते हैं । यह घना और छायादार वृक्ष होता है । इसकी फलियों और पुष्पों में भेद होने से यह काला , पीला , सफेद और लाल कई प्रकार का होता है। शिरीष के पत्ते , छाल , जड़ , फूल और बीज सभी का औषधी बनाने में प्रयोग किया जाता है। शिरीष का वृक्ष बहुत तेजी से बड़ा होता है। इसकी विशेषता यह है कि इसकी शाखाएँ बहुत ही सहजता से विकसित होती हैं। और इस पर फल , फूल भी जल्दी लगते है।


बाह्य स्वरूप

यह 16 से 20 मीटर तक ऊंचा होता है। यह वृक्ष बहुत ही घना होता है। इसके फूल सफेद व पीला रंग का और काफी सुंगधित होते हैं। इसका फल 10 से 30 सेंटीमीटर लंबा2 से 5 सेंटमीटर तक चौड़ा होता है।  यह फल नुकीला और पतला होता है। कच्ची अवस्था में यह फल हरे रंग का होता है। पकने  पर भूरे रंग का हो जाता है। यह फल चिकना और चमकीला होता है। 


गुण

यह दर्द को शांत करता है। और यह फोड़े को ठीक कर विष के प्रभाव को कम या नष्ट करता है। और यह आँख के रोग को नष्ट करता है। यह त्रिदोष शामक है । और यह प्रमेह , रोगनाशक , कफ का शोधक है । पीले सिरस के पत्तों को घी में भूनकर दिन में 3 बार लेने से खांसी नष्ट होती है। इसकी छाल में सैपोनिन, टैनिन एवं रालीय तत्व पाये जाते हैं।


औषधीय प्रयोग और फायदे

• शिरीष के पत्ते और आम के पत्तों के रस को मिला लें। इसे गुनगुना करके 1 से 2 बूंद कान में डालें। इससे कानों के के दर्द दूर हो जाते हैं।

• शिरीष की जड़ से काढ़ा बना लें। इससे कुल्ला बनाने से दांतों के रोग दूर होते हैं।

• इस काढ़ा से मंजन करने से दांतों में मजबूती भी आती हैं।

• पीले शिरीष के पत्तों को घी में भून लें। इसे दिन में तीन बार 1-1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खांसी मिटती है।

• शिरीष के बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार देने से पेचिश में लाभ होता है। 

• शिरीष का तेल लगाने से कुष्ठ आदि चर्म रोगों में लाभ होता है।

• इससे घाव व फोड़े-फुंसी तुरंत ठीक हो जाते हैं।  


Saturday, 8 May 2021

गिलोय - परिचय , बाह्य स्वरूप , गुण , औषधीय प्रयोग और फायदे ।

 वैज्ञानिक नाम : Tinospora Cordifolia

कुलनाम : Menispermaceae

अंग्रेजी नाम : Tinospora

संस्कृत : गुडूची , अमृत वल्ली , वत्सादनी ,कुण्डलिनी

हिन्दी : गिलोय

जगत : पादप


परिचय

गिलोय कभी न सूखने वाली एक बडी लता है । यह एक बहुवर्षीय लता है । इसी कारण इसे अमृता के नाम से जाना जाता है । इसके पत्ते पान के पत्ते के समान होते हैं। यह समुद्र तल से लगभग 1000 फुट की ऊँचाई तक पाई जाती है। इसका तना काफी मोटा होता है। इसकी लता रस्सी की तरह होती है। इसके तने तथा शाखाओं से कई वायुवीय जड़े निकलती हैं । इस पर हरे , पीले व लाल रंग के फूल झुंड में लगते हैं । गिलोय की लता जंगलों , खेतों की मेंढ़ो , पहाड़ों की चट्‌टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम व आम के वृक्ष के आस पास भी यह पाई जाती है। यह जिस भी वृक्ष पर चढ़ती है उसी वृक्ष के कुछ गुण भी अपने अंदर समाहित कर लेती है। नीम के वृक्ष पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ मानी जाती है।


बाह्य स्वरूप

गिलोय की बेल जंगल में , खेतों की मेंढ़ो , चट्टानों आदि स्थानों पर कुण्डलाकार चढ़ती हुई मिलती है। इसका तना मोटा होता है। यह आम और नीम के वृक्ष के आस पास भी पाई जाती है। इसकी पहचान यह है कि इसकी बाह्य छाल हल्कें भूरे रंग की कागज जैसी परतों में होती है। खुरचने में यह परतों में निकलती है। इसके तने से हवा में जड़े निकलकर झूलती हैं , जो भूमि के अंदर घुसकर नये पौधे को जन्म देती है। इस पर ग्रीष्म ऋतु में छोटे - छोटे फूल गुच्छों में पीले रंग के लगते हैं। तथा पकने के बाद फल लाल हो जाते हैं। बीज सफेद चिकने होते हैं।


गुण

आयुर्वेद के अनुसार गिलोय की पत्तियां, जड़ें और तना तीनो ही भाग सेहत के लिए बहुत गुणकारी हैं लेकिन बीमारियों के इलाज में सबसे ज्यादा उपयोग गिलोय के तने या डंठल का ही होता है। गिलोय में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से यह बुखार, पीलिया, गठिया, डायबिटीज, कब्ज़, एसिडिटी, अपच, मूत्र संबंधी रोगों आदि से आराम दिलाती है। बहुत कम औषधियां ऐसी होती हैं जो वात, पित्त और कफ तीनो को नियंत्रित करती हैं, गिलोय उनमें से एक है। गिलोय का मुख्य प्रभाव टॉक्सिन (विषैले हानिकारक पदार्थ) पर पड़ता है और यह हानिकारक टॉक्सिन से जुड़े रोगों को ठीक करने में असरदार भूमिका निभाती है।


औषधीय प्रयोग और फायदे

• गिलोय रस में त्रिफला मिलाकर क्वाथ बनाकर इसे पीपल चूर्ण व शहद के साथ सुबह - शाम सेवन करते रहने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

• धूप से या पित प्रकोप से वमन हो रहा है ,तब गिलोय स्वरस 10-15 ग्राम में 5-6 ग्राम मिश्री मिलाकर प्रातः सायं पीने से वमन शांत हो जाती है।

• गिलोय को पानी में  गुनगुना करके कान में 2-2 बूंद दिन में दो बार डालने से कान का मैल निकल जाता है।

• यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी औषधि है।  

खुराक और सेवन का तरीका : डायबिटीज के लिए आप दो तरह से गिलोय का सेवन कर सकते हैं।

गिलोय जूस : दो से तीन चम्मच गिलोय जूस (10-15ml) को एक कप पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट इसका सेवन करें।

गिलोय चूर्ण : आधा चम्मच गिलोय चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार खाना खाने के एक से डेढ़ घंटे बाद लें।  

• डेंगू होने पर दो से तीन चम्मच गिलोय जूस को एक कप पानी में मिलाकर दिन में दो बार खाना खाने से एक-डेढ़ घंटे पहले लें। इससे डेंगू से जल्दी आराम मिलता है।

अगर आप पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, एसिडिटी या अपच से परेशान रहते हैं तो गिलोय आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। गिलोय का काढ़ा, पेट की कई बीमारियों को दूर रखता है। इसलिए कब्ज़ और अपच से छुटकारा पाने के लिए गिलोय का रोजाना सेवन करें।


खुराक और सेवन का तरीका : आधा से एक चम्मच गिलोय चूर्ण को गर्म पानी के साथ रात में सोने से पहले लें। इसके नियमित सेवन से कब्ज़, अपच और एसिडिटी आदि पेट से जुड़ी समस्याओं से जल्दी आराम मिलता हैैै।

• खांसी से आराम पाने के लिए गिलोय का काढ़ा बनाकर शहद के साथ उसका सेवन करें। इसे दिन में दो बार खाने के बाद लेना ज्यादा फायदेमंद रहता है।

• गिलोय में ऐसे एंटीपायरेटिक गुण होते हैं जो पुराने से पुराने बुखार को भी ठीक कर देती है। इसी वजह से मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसे गंभीर रोगों में होने वाले बुखार से आराम दिलाने के लिए गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है। बुखार से आराम पाने के लिए गिलोय घनवटी (1-2 टैबलेट) पानी के साथ दिन में दो बार खाने के बाद लें।

• बीमारियों को दूर करने के अलावा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। गिलोय जूस का नियमित सेवन शरीर की इम्युनिटी पॉवर को बढ़ता है जिससे सर्दी-जुकाम समेत कई तरह की संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।

खुराक और सेवन का तरीका : गिलोय इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दिन में दो बार दो से तीन चम्मच (10-15ml) गिलोय जूस का सेवन करें। 

• गिलोय त्वचा संबंधी रोगों और एलर्जी को दूर करने में भी सहायक है। अर्टिकेरिया में त्वचा पर होने वाले चकत्ते हों या चेहरे पर निकलने वाले कील मुंहासे, गिलोय इन सबको ठीक करने में मदद करती है।
इस्तेमाल करने का तरीका : त्वचा संबंधी समस्याओं से आराम पाने के लिए गिलोय के तने का पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को सीधे प्रभावित हिस्से पर लगाएं। यह पेस्ट त्वचा पर मौजूद चकत्ते, कील-मुंहासो आदि को दूर करने में सहायक है।  

• गिलोय में एंटी-आर्थराइटिक गुण होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण गिलोय गठिया से आराम दिलाने में कारगर होती है। खासतौर पर जो लोग जोड़ों के दर्द से परेशान रहते हैं उनके लिए गिलोय का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है।  

खुराक और सेवन का तरीका : गठिया से आराम दिलाने में गिलोय जूस और गिलोय का काढ़ा दोनों ही उपयोगी हैं। अगर आप गिलोय जूस का सेवन कर रहे हैं तो दो से तीन चम्मच (10-15ml ) गिलोय जूस को एक कप पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट इसका सेवन करें। इसके अलावा अगर आप काढ़े का सेवन कर रहे हैं तो गिलोय का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाएं और दिन में दो बार खाने के बाद इसका सेवन करें।

• गिलोय में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण यह सांसो से संबंधित रोगों से आराम दिलाने में प्रभावशाली है। गिलोय कफ को नियंत्रित करती है साथ ही साथ इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाती है जिससे अस्थमा और खांसी जैसे रोगों से बचाव होता है और फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।  
 

Thursday, 6 May 2021

अखरोट ( Walnut ) - परिचय , बाह्य स्वरूप , गुण , उत्पादन , औषधीय प्रयोग , उपयोग , अखरोट के फायदे ।

 अखरोट

वैज्ञानिक नाम : Juglans Regia
कुलनाम : Juglandceae
अंग्रेजी नाम : Walnut
संस्कृत : अक्षोट , अक्षोड
हिन्दी : अखरोट
जगत : पादप
गण : Fagales
वंश : Juglans L







परिचय

अखरोट एक प्रकार का सूखा मेवा है जो खाने के लिये उपयोग में लाया जाता है। अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है ।
यह सुन्दर और सुगन्धित वृक्ष होते हैं । यह पतझड़ करने वाले बहुत अच्छे वृक्ष होते है। अखरोट की दो जातियाँ पाई जाती हैं।

• जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक ऊँचे व अपने आप उगने वाले पेड़ होते हैं तथा इन पर लगने वाले फल का छिलका मोटा होता है।

• कृषि जन्य 40 से 60 फुट तक ऊँचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट कहते हैं।


हेल्दी फैट, फाइबर, विटमिन्स और मिनरल्स से भरपूर अखरोट यानी वॉलनट सिर्फ ब्रेन हेल्थ और मेमरी के लिए ही फायदेमंद तो है ही , बल्कि आपकी ओवरऑल सेहत के लिए भी बेस्ट माना जाता है। अखरोट में प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फॉस्फॉरस, कॉपर, सेलेनियम, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। अपने ढेरों फायदों की वजह से अखरोट को तो ड्राई फ्रूट्स का राजा भी कहा जाता है।





बाह्य स्वरूप

अखरोट का वृक्ष, एक पतझड़ करने वाला वृक्ष है । जिसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं । अखरोट का फल गोल आकर का, एकल बीज वाला, एक बहुत ही कड़े खोल वाला फल होता है । पहले ये फल हरे रंग का होता है । लेकिन आमतौर पर पूरी तरह से पकने के बाद भूरे रंग का दिखाई देता है। फिर छिलका हटाने से अखरोट का खोल का दिखाई देता है । इस कठोर खोल को हटानें पर भूरे रंग के बीज एक दूसरे में संलग्न होते हैं । जिसमें एंटीऑक्सिडेंट होते हैं । अखरोट के पत्ते 3 से 8 इंच लम्बे , 2 से 4 इंच चौड़े , अंडाकार , और सरल धार वाले पुष्प एकलिंगी होते हैैं । अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है । और अंदर मानव मस्तिष्क के जैसे आकार वाली गिरी होती है । बसंत ऋतु में फूल तथा शरद ऋतु में फल आते हैं।


गुण

यह वान शामक , कफ पित वर्धक , अनुलोमन , को कम करने होता है। इसके छिलकों और पत्तों का औषधीय बनाने में उपयोग किया जाता है। अखरोट में 40 से 45 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इसमें जुगलैडिक एसिड और रेजिन आदि भी पाये जाते हैं। इसके फलों में ऑक्जैलिक एसिड पाया जाता है। बिना खोल के अखरोट में 4% पानी, 15% प्रोटीन, 65% वसा और 14% कार्बोहाइड्रेट और 7% फाइबर पाया जाता है। अखरोट में कई आहार खनिजों की समृद्धता होती है, विशेषकर , मैंगनीज और विटामिन बी भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। 


उत्पादन

अखरोट के उत्पादन में चीन सबसे आगे हैं । और इसका उत्पादन करने वाले अन्य देशों में प्रमुख हैं - ईरान, अमेरिका, तुर्की और यूक्रेन । पूर्वी यूरोपीय देशों में सबसे ज्यादा उपज होती है । जिनमें प्रमुख हैं - स्लोवेनिया और रोमानिया। भारत में कश्मीर घाटी में इसकी उपज होती है । संयुक्त राज्य अमेरिका अखरोट का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है । और उसके बाद तुर्की दूसरे स्थान पर है। 


औषधीय प्रयोग

• अखरोट की गिरी को 25 से 50 ग्राम तक की मात्रा में रोज खाने से मस्तिष्क तेज और सबल हो जाता है।

• अखरोट की छाल को मुंह में रखकर चबाने से दांत साफ होते हैं।

• अखरोट के छिलकों के भस्म से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं।

• अखरोट की गिरी को भूनकर चबाने से लाभ होता है।

• अखरोट की छाल का क्वाथ 60 से 80 ग्राम पिलाने से आतों के कीडे मर जाते हैं।

• अखरोट की पत्तों क्वाथ 40 से 60 ग्राम की मात्रा में पिलाने से भी आंतों के कीड़े मर जाते हैं।



उपयोग

• अखरोट का उपयोग कई मिठाइयों व व्यंजनों में किया जाता है।

• अखरोट के छिलकों और पत्तों का उपयोग औषधीय बनाने में भी किया जाता है ।

• अखरोट की गिरी से तेल निकाला जाता है और उस तेल का उपयोग मालिश करने तथा अन्य कामों (खाने व औषधीय प्रयोग) में किया जाता है।

• अखरोट का प्रयोग लिखने व ड्राइंग के लिए स्याही बनाने और कपड़ों के लिए भूरे रंग की डाई बनाने में किया जाता है ।


अखरोट के फायदे


• रोज 25 से 50 ग्राम अखरोट की गिरी खाने से मस्तिष्क तेज होता है। 

• अखरोट की रोज नियमित मात्रा में खाने से सेहत अच्छा होता है।

• अखरोट वजन कम करने व दिल की बीमारियों से बचाने में सहायक होता है।

• अखरोट डायबिटीज को कम या दूर करने भी मददगार होता है।

• अखरोट कब्ज दूर कर पाचन को अच्छा करने में भी मददगार होता है ।

• अखरोट खाने से हड्डिया मजबूत होती हैं।

• अखरोट कैंसर के खतरे को कम करता है ।

• अखरोट इम्यूनिटी को बढ़ाता है।

• अखरोट तनाव को कम करता है, और बेहतर नींद आराम देता है।

Monday, 3 May 2021

वासा ( Malabar Nut ) || वसिंग्या - परिचय , बाह्य स्वरूप , गुण , औषधीय प्रयोग

 वासा Malabar Nut ( वसिंग्या )

वैज्ञानिक नाम : Adhatoda zeylanica Medik
कुलनाम : Acanthaceae
अंग्रेजी नाम : Malabar Nut
संस्कृत : वासक , आटरूषक, वसिका
हिन्दी : वासा, वासक, अडूसा , विसौटा , अरुष






परिचय

वासा ( वसिंग्या ) के पौधे भारत में 1200 से 4000 फुट की ऊँचाई तक कंकरीली भूमि में स्वयं ही झाडियों के समूह में उगते हैं। यह भारत के अधिकांश भागों में एक जंगली झाड़ी के रूप में पाया जाता है और इसे बाड़ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। अडूसा के पत्ते, फूल, जड़ों और छाल का आयुर्वेद में हजारों साल से प्रयोग होता आया है। इसमें जीवाणुरोधी, सूजन को कम करने वाले और रक्त को शुद्ध करने वाले गुण होते हैं। मालाबार नट श्वसन रोगों के लिए आयुर्वेद में इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य औषधीयों में से एक है। इसके उपयोग से ब्रोंकाइटिस, कफ, ठंड, दमा आदि रोगों में बहुत लाभ होता है। अडूसा सदाबहार झाड़ी होती है जिसकी ऊंचाई 2.2 - 3.5 मीटर तक होती है। इसके फुल सफ़ेद रंग के होते हैं। 




बाह्य स्वरूप

वासा ( वसिंग्या ) का पौधा झाड़ीदार होता है। यह एक सदाबहार झाड़ी है। और यह बाड़ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है । इसके पत्ते 3 से 8 इंच लम्बे अभिमुखी और 2 से 3 इंच चौड़ी होती हैं । इस पर श्वेत पुष्प 2-3 इंच लम्बी होते हैं जो कि फरवरी - मार्च में आते हैं। इसकी फली 0.75 इंच लम्बी होती है। और प्रत्येक फली में 4 बीच होते हैं। इसकी ( वसिंग्या ) की ऊँचाई 2 मीटर से 3.5 मीटर तक होती है। 



गुण

वसिंग्या स्वर के लिए उत्तम और हृदय , कफ , पित , रक्त विकार , श्वांस , ज्वर , खांसी , वमन , प्रमेह , कोढ तथा क्षय का नाश करने
 वाला है।  श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है । यह कफ को पतला करता है और बाहर निकालता है। यह श्वास नलिकाओं का कम परन्तु स्थायी प्रसार करता है। श्वास नलिकाओं के फैल जाने से दमे के रोगी का सांस फूलना कम हो जाता है।


औषधीय प्रयोग


• वसिंग्या के फूलों को छाया में सुखाकर बारीक पीसकर 10 ग्राम चूर्ण में थोड़ा गुड़ मिलाकर चार खुराक बना लें । सिरदर्द होने पर एक खुराक गोली खिला दें , जल्दी लाभ होगा ।

• वसिंग्या के ताजे पुष्पों को गरम कर आंख पर बांधने से आंख के गोलक का सूजन दूर होती है।

• यदि मुख में छाले हो तो इसके 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। फोक थूक देना चाहिए ।

• इसकी लकड़ी की दातौन करने से मुख रोग दूर हो जाते हैं ।

• इसके पत्तों के क्वाथ से कुल्ला करने से मसूड़ों की पीड़ा कम होती है।

• वसिंग्या , हल्दी , धनियाँ , गिलोय , पीपल , सौंठ के 10 से 20 ग्राम क्वाथ में 1 ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार पीने से सम्पूर्ण श्वांस रोग पूर्ण रुप से नष्ट हो जाते हैं।

• वसिंग्या , मुनक्का और मिश्री के 10 से 20 ग्राम क्वाथ दिन में 3 से 4 बार पिलाने से सूखी खांसी मिटती है ।




Saturday, 1 May 2021

आम ( Mango ) - परिचय , बाह्य स्वरूप , रासायनिक संघटन , औषधीय प्रयोग , और आम की किस्में ।

 आम

वैज्ञानिक नाम - Mangifera Indica
कुलनाम - Anacardiaceae
अंग्रेजी नाम - Mango
संस्कृत - आम्र, फलश्रेष्ठ, रसाल, कामसर
हिन्दी - आम
जगत - पादप
गण - sapindales
जाति - mangifera
प्रजाति - indica




परिचय


आम एक प्रकार का रसीला और मीठा फल है । आम को फलों का राजा भी कहते हैं। आम भारत एवं पूर्वी द्वीप समूह का आदिवासी पौधा है। यह ग्रीष्म जलवायु का वृक्ष है। पूरे भारत में इसके वृक्ष लगाये जाते हैं। आमों की प्रजाति को मैंगिफेरा कहा जाता है। पहले इस फल की प्रजाति केवल भारत में पायी जाती थी । इसके बाद धीरे - धीरे अन्य देशों में फैलने लगी । इसका सबसे अधिक उत्पादन भारत में किया जाता है। आम की अनेक किस्में पाई जाती हैं । जो पौधे गुठली बोकर उत्पन्न किये जाते हैं, उन्हें देशी या बीजू आम और जो उन्नत जाति के आम के वृक्षों की शाखाओं पर कलम बांधकर तैयार किये जाते हैं। वे कलमी आम कहलाते हैं। इसके अलावा देश , स्थान , आकार, रंग, रूप भेद से इनकी अनेक किस्में मिलती हैं। देशी आम में रेशा होने पर इसका रस पतला होता है। और इसे चूसकर भी खाया जाता है परन्तु कलमी आम में फल का गूदा ज्यादा होता है अत: इसे काटकर खाया जाता है। औषधि प्रयोग के लिए कलमी आम की अपेक्षा चूसने वाले बीजू आम ज्यादा गुणकारी होते हैं। कच्चे आमों का अचार भी बनाय
 जाता है।
नोटः आम भारत , पाकिस्तान और फिलीपिन्स का राष्ट्रीय फल माना जाता है। और बांग्लादेश में भी आम के वृक्ष को राष्ट्रीय पेड़ का दर्जा प्राप्त हुआ है।

बाह्य - स्वरूप

आम का वृक्ष 30 से 120 फुट तक ऊंचा होता है पत्ते 4 से 12 इंच लंबे एवं 1 से 3 इंच चौड़े , भालाकार ,आयताकार , तीक्ष्णाग्र होते हैं , जिन्हें मसलने पर सुगंध आती है ।फल अनेक आकृति के कच्चे में हरे तथा पकने पर पीले या रक्ताभ हो जाते हैं । फल के भीतर बड़ी गुठली तथा उसके भीतर बीजमज्जा होती है ।बसंत में फूल और ग्रीष्म फल लगते हैं ।


रासायनिक संघठन


फल में अन्य तत्वों के अतिरिक्त विटामिन ए , विटामिन बी और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं ।


आम का बौर (फल)  -  शीतल , वातकारक, मलरोधक, अग्नि - दीपक , रुचिवर्धक तथा कफ , पित्त , प्रमेह और कफ नाशक है ।

आम की जड़  -  कसैली , मलरोधक , रुचिकारक तथा वात पित्त और कफ को हरने वाली है ।

आम की गुठली  -  किंचित कसैली , वमन अतिसार और हृदय स्थल की पीड़ा को दूर करने वाली है ।

आम बीज तेल  -  आम की गुठली का तेल कसैला , स्वादिष्ट , रुखा कड़वा तथा मुखरोग , कफ एवं वात को दुरुस्त करता है


औषधीय प्रयोग


केशकल्प   -   आम की गुठलियों के तेल को लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा काले बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं बाल झड़ना व रूसी में भी इससे लाभ होता है ।

स्वरभंग  -  आम के 40 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में उबालकर चतुर्थांश से क्वाथ में मधु मिलाकर धीरे-धीरे पीने से स्वरभंग में लाभ होता है ।

खांसी   -  पके हुए आम को आग में भून ले । ठंडा होने पर धीरे-धीरे चूसने से सूखी खांसी मिटती है ।

प्यास   -  गुठली की गिरी के 40 से 60 ग्राम क्वाथ में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से भयंकर प्यास शांत होती है ।



आम के अन्य प्रयोग


फल की छाल व पत्तों को संभाग पीसकर मुख में धारण करने या कुल्ला करने से दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं ।

नरम टहनी के पत्तों को पीसकर लगाने से बाल बड़े व काले होते हैं।

आम के ताजे कोमल पत्ते दस नग और काली मिर्च दो-तीन नग दोनों को जल में पीसकर गोलियां बना लें । इसको खाने से उल्टी दस्त बंद हो जाते हैं ।

फूलों का काढ़ा एवं चूर्ण सेवन करने से अथवा इनके चूर्ण में चौथाई भाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से अतिसार , प्रमेह , अरुचि , रक्तदोष एवं पित के उपद्रव नष्ट होते हैं ।

कच्चे आमों का अचार बनाया जाता है।


आम की किस्में


•वार्षिक किस्में

बंबइया
badam
तोतापरी
मालदा
पैरी
सफ्दर पसंद
सुवर्णरेखा
sundarja
सुन्दरी
लंगडा
राजापुरी


•मध्य ऋतु किस्में

अलंपुर बानेशन
अल्फोंसो/बादामी/गुंदू/आप्पस/खडेर'
बंगलोरा/तोटपुरी/कॉल्लेक़्टीओं/किली-मुक्कु
बाँगनपलल्य/बनेशन/छपती
दशहरी/दशहरी अमन/निराली अमन
गुलाब ख़ास
ज़ार्दालू
आम्रपाली (आम)


•वर्ष मे मध्य मे

रूमानि
समार्बेहिस्त/चोवसा/चौसा
वनरज


•मौसम की समाप्ति पर

फजली
सफेदा लखनऊ


•कभी-कभार फलने वाले

मुलगोआ
नीलम

सिरस ( शिरीष ) - परिचय , बाह्य स्वरूप , गुण , औषधीय प्रयोग और फायदे ।

 वैज्ञानिक नाम : Albizia lebbeck ( L. ) कुलनाम : Mimosaceae अंग्रेजी नाम : Siris tree संस्कृत : शिरीष , शुक पुष्प हिन्दी : सिरीस , सिरस परिच...